12 ज्योतिर्लिंग के नाम व स्थान 12 powerful Jyotirlinga

12 ज्योतिर्लिंग के नाम व स्थान

धर्म दर्शन में आईये जानते है 12 ज्योतिर्लिंग के नाम व स्थान एवं  शिव लिंग और ज्योतिर्लिंग में क्या अंतर है और कितने ज्योतिर्लिंग कहाँ कहाँ  पर स्थित है। भारत देश धर्म परायण देश है।  सम्पूर्ण भारत वर्ष में हजारो शिव मंदिर है और उनमे स्थापित है हजारो शिवलिंग ,शाश्त्रो में शिवलिंग का अर्थ बताया गया है अनंत जिसकी न कोई शुरुआत है और न अंत शिवलिंग की स्थापना विधि  विधान से मानव द्वारा की जाती है। वही हिन्दू धर्म के अनुसार ज्योतिर्लिंग का अर्थ होता है भगवान शिव का ज्योति के रूप में प्रगट होना, कहा जाता है की ये मानव द्वारा निर्मित नहीं है  बल्कि ये सृष्टि के कल्याण और गतिमान बनाये रखने के लिए स्वयं प्रगट हुए है

ज्योतिर्लिंग १२ ही है शिव लिंग कई हो सकते है।  इन १२ ज्योतिर्लिंग के बारे कहा जाता है की यहा स्वयं भगवान शिव विद्यमान है,जो एक ज्योति स्वरुप प्रगट हुए थे।  शिव पुराण के अनुसार एक बार भगवान व्रह्मा और भगवान विष्णु में  इस बात को लेकर विवाद हो गया की सर्वश्रेष्ठ कौन है।

दोनों इसी बात पर अडिग थे की वे ही सर्वश्रेष्ठ है।  इसी भ्रम को दूर करने के लिए भगवान शिव एक ज्योति के रूप में प्रगट हुए जिसकी न तो शुरुआत थी और न अंत ज्योतिलिंग में से आवाज आयी और दोनों में से कोई भी ज्योतिर्लिंग का छोर नहीं देख पाए तभी  ये तय हुआ की ब्रह्मा जी और विष्णुजी से श्रेष्ठ ये दिव्या ज्योति है।  इस ज्योतिस्तंभ को ज्योतिर्लिंग कहा गया। जहाँ लिंग का अर्थ है प्रतीक अर्थात भगवान शिव का ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रगट होना।  साथ ही इसे सृष्टि के निर्माण का प्रतिक भी मन जाता है आइये जानते है १२ ज्योतिर्लिंग के बारे मे।

1.सोमेश्वर या सोमनाथ

यह प्रथम ज्योतिर्लिंग है, श्री सोमनाथ ज्योतिर्लिंग मंदिर गिर सोमनाथ। स्थान के बारे में: राज्य के पश्चिमी छोर पर जटिल रूप से नक्काशीदार शहद के रंग का सोमनाथ मंदिर माना जाता है कि भारत में 12 ज्योतिर्लिंग के नाम व स्थान में से पहला स्थान आया था – एक ऐसा स्थान जहाँ शिव प्रकाश के एक उग्र स्तंभ के रूप में प्रकट हुए थे।ऐसा कहा जाता है कि सोमराज (चंद्रमा देवता) ने सबसे पहले सोमनाथ में सोने से बना एक मंदिर बनवाया था; 

इसे रावण ने चांदी से, कृष्ण ने लकड़ी से और भीमदेव ने पत्थर से बनवाया था। वर्तमान शांत, सममित संरचना को मूल तटीय स्थल पर पारंपरिक डिजाइनों के लिए बनाया गया था: यह एक मलाईदार रंग में रंगा गया है और इसमें थोड़ी अच्छी मूर्तिकला है। इसके केंद्र में स्थित बड़ा, काला शिव लिंग 12 सबसे पवित्र शिव मंदिरों में से एक है, जिसे ज्योतिर्लिंग के रूप में जाना जाता है।

12 ज्योतिर्लिंग के नाम व स्थान

 

2,श्रीशैलम मल्लिकार्जुन

श्रीशैलम मल्लिकार्जुन द्वितीय ज्योतिर्लिंग है, यह आंध्र प्रदेश में श्रीशैल नामक पर्वत पर स्थित है। मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के रूप में जाना जाता है, यह देश के हर कोने से भक्तों का आना लगा रहता है। 12 ज्योतिर्लिंग के नाम व स्थान में से एक, श्री मल्लिकार्जुन स्वामी मंदिर भगवान शिव को समर्पित है।मल्लिकार्जुन स्वामी मंदिर नल्लामाला पहाड़ियों की चोटी पर स्थित है, जिसके दाहिनी ओर कृष्णा नदी बहती है, जो एक लुभावनी प्राकृतिक सुंदरता भी प्रस्तुत करती है।

जिस पहाड़ी पर मंदिर स्थित है, उसे श्री पर्वत, श्रीगिरि, श्रीनागम, सिरीधन आदि नामों से भी जाना जाता है। शिवपुराण के अनुसार, मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग शिव और पार्वती का संयुक्त रूप है. मल्लिका का अर्थ है पार्वती और अर्जुन शब्द शिव का वाचक है. इस तरह से इस ज्योतिर्लिंग में भगवान शिव और माता पार्वती दोनों की ज्योतियां प्रतिष्ठित हैं

 

12 ज्योतिर्लिंग के नाम व स्थान

3.महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग

महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग तृतीय ज्योतिर्लिंग है और यह मध्य प्रदेश के उज्जैन में स्थित है। उज्जयिनी के श्री महाकालेश्वर भारत में 12 ज्योतिर्लिंग के नाम व स्थान में से एक हैं। महाकालेश्वर मंदिर की महिमा का विभिन्न पुराणों में विशद वर्णन किया गया है। कालिदास से शुरू करते हुए, कई संस्कृत कवियों ने इस मंदिर को भावनात्मक रूप से समृद्ध किया है।

उज्जैन भारतीय समय की गणना के लिए केंद्रीय बिंदु हुआ करता था और महाकाल को उज्जैन का विशिष्ट पीठासीन देवता माना जाता था। समय के देवता, शिव अपने सभी वैभव में, उज्जैन में शाश्वत शासन करते हैं। महाकालेश्वर का मंदिर, इसका शिखर आसमान में चढ़ता है, आकाश के खिलाफ एक भव्य अग्रभाग, अपनी भव्यता के साथ आदिकालीन विस्मय और श्रद्धा को उजागर करता है।

महाकाल शहर और उसके लोगों के जीवन पर हावी है, यहां तक ​​कि आधुनिक व्यस्तताओं के व्यस्त दिनचर्या के बीच भी, और पिछली परंपराओं के साथ एक अटूट लिंक प्रदान करता है। भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक, महाकाल में लिंगम (स्वयं से पैदा हुआ), स्वयं के भीतर से शक्ति (शक्ति) को प्राप्त करने के लिए माना जाता है, अन्य छवियों और लिंगों के खिलाफ, जो औपचारिक रूप से स्थापित हैं और मंत्र के साथ निवेश किए जाते हैं- शक्ति।

महाकालेश्वर की मूर्ति दक्षिणमुखी होने के कारण दक्षिणामूर्ति मानी जाती है। यह एक अनूठी विशेषता है, जिसे तांत्रिक परंपरा द्वारा केवल 12 ज्योतिर्लिंगों में से महाकालेश्वर में पाया जाता है। महाकाल मंदिर के ऊपर गर्भगृह में ओंकारेश्वर शिव की मूर्ति प्रतिष्ठित है। गर्भगृह के पश्चिम, उत्तर और पूर्व में गणेश, पार्वती और कार्तिकेय के चित्र स्थापित हैं। दक्षिण में नंदी की प्रतिमा है। तीसरी मंजिल पर नागचंद्रेश्वर की मूर्ति केवल नागपंचमी के दिन दर्शन के लिए खुली होती है। महाशिवरात्रि के दिन, मंदिर के पास एक विशाल मेला लगता है, और रात में पूजा होती है।

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4.ओंकारेश्व ज्योतिर्लिंग

भगवान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंग में चौथा ओम्कारेश्वर है.ओमकार का उच्चारण सर्वप्रथम स्रष्टिकर्ता ब्रह्मा के मुख से हुआ था. वेद पाठ का प्रारंभ भी ॐ के बिना नहीं होता है. उसी ओमकार स्वरुप ज्योतिर्लिंग श्री ओम्कारेश्वर है, अर्थात यहाँ भगवान शिव ओम्कार स्वरुप में प्रकट हुए हैं. ज्योतिर्लिंग वे स्थान कहलाते हैं जहाँ पर भगवान शिव स्वयम प्रकट हुए थे एवं ज्योति रूप में स्थापित हैं. प्रणव ओम्कारेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन से समस्त पाप भस्म हो जाते है.पुराणों में स्कन्द पुराण, शिवपुराण व वायुपुराण में ओम्कारेश्वर क्षेत्र की महिमा उल्लेख है. ओम्कारेश्वर में कुल 68 तीर्थ है.

यहाँ 33कोटि देवता विराजमान है. दिव्य रूप में यहाँ पर 108 प्रभावशाली शिवलिंग है. 84 योजन का विस्तार करने वाली माँ नर्मदा का विराट स्वरुप है श्री ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मध्य प्रदेश के प्रमुख शहर इंदौर से 77 किमी की दुरी पर है. एवं यह ऐसा एकमात्र ज्योतिर्लिंग है जो नर्मदा के उत्तर तट पर स्थित है. भगवान शिव प्रतिदिन तीनो लोकों में भ्रमण के पश्चात यहाँ आकर विश्राम करते हैं. अतएव यहाँ प्रतिदिन भगवान शिव की विशेष शयन व्यवस्था एवं आरती की जाती है तथा शयन दर्शन होते हैं.

 

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5.केदारेश्व ज्योतिर्लिंग

केदारेश्वर पंचम ज्योतिर्लिंग है, जो उत्तराखंड में हिमालय की चोटी पर स्थित है और यह केदारनाथ के नाम से विख्यात है। केदारनाथ मन्दिर भारत के उत्तराखंड राज्य के रूद्रप्रयाग जिले में स्थित है। ऐसा माना जाता है कि महाभारत के युद्ध में विजयी होने पर पांडव भ्रातृहत्या अर्थात (परिवार वालो की हत्या) के पाप से मुक्ति पाना चाहते थे। इसके लिए वे भगवान शंकर का आशीर्वाद पाना चाहते थे |

लेकिन भगवान शंकर पांडवो से गुस्सा थे। भगवान शंकर के दर्शन के लिए पांडव काशी गए , पर भगवान शंकर पांडवो को वहां नहीं मिले। वे लोग उन्हें खोजते हुए हिमालय तक आ पहुंचे । भगवान शंकर पांडवों को दर्शन नहीं देना चाहते थे, इसलिए वे वहां से अंतध्र्यान हो कर केदार में जा बसे। दूसरी ओर, पांडव भी लगन के पक्के थे, वे उनका पीछा करते-करते केदार पहुंच ही गए।

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6.भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग

भीमाशंकर षष्ठम ज्योतिर्लिंग है। भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र में भीमा नदी के पास सहयाद्रि पर्वत पर स्थित है। भीमा नदी इसी पर्वत से निकलती है। यह प्रसिद्ध भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के पुणे से लगभग 110 किलोमीटर दूर सह्याद्रि पर्वत पर स्थित है। इस मंदिर में स्थित शिवलिंग काफी बड़ा और मोटा है इसी के चलते यह मंदिर मोटेश्वर महादेव के नाम से भी विख्यात है। मान्यता है कि इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन और स्मरण करने मात्र से कष्ट दूर हो जाते हैं.

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7.विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग

विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग काशी में विराजमान है और यह सातंवा ज्योतिर्लिंग है। यह काशी विश्वानाथ के नाम से प्रसिद्ध है।शिव महापुराण में श्री विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग की महिमा कुछ इस प्रकार बतायी गई है– ‘परमेश्वर शिव ने माँ पार्वती के पूछने पर स्वयं अपने मुँह से श्री विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग की महिमा कही थी। उन्होंने कहा कि वाराणसी पुरी हमेशा के लिए गुह्यतम अर्थात अत्यन्त रहस्यात्मक है तथा सभी प्रकार के जीवों की मुक्ति का कारण है।

इस पवित्र क्षेत्र में सिद्धगण शिव-आराधना का व्रत लेकर अनेक स्वरूप बनाकर संयमपूर्वक मेरे लोक की प्राप्ति हेतु महायोग का नाम ‘पाशुपत योग’ है। पाशुपतयोग भुक्ति और मुक्ति दोनों प्रकार का फल प्रदान करता है।

भगवान शिव ने कहा कि मुझे काशी पुरी में रहना सबसे अच्छा लगता है, इसलिए मैं सब कुछ छोड़कर इसी पुरी में निवास करता हूँ। जो कोई भी मेरा भक्त है और जो कोई मेरे शिवतत्त्व का ज्ञानी है, ऐसे दोनों प्रकार के लोग मोक्षपद के भागी बनते हैं, अर्थात उन्हें मुक्ति अवश्य प्राप्त होती है। इस प्रकार के लोगों को न तो तीर्थ की अपेक्षा रहती है और न विहित अविहित कर्मों का प्रतिबन्ध। इसका तात्पर्य यह है कि उक्त दोनों प्रकार के लोगों को जीवन्मुक्त मानना चाहिए।

वे जहाँ भी मरते हैं, उन्हें तत्काल मुक्ति प्राप्त होती है। भगवान शिव ने माँ पार्वती को बताया कि बालक, वृद्ध या जवान हो, वह किसी भी वर्ण, जाति या आश्रम का हो, यदि अविमुक्त क्षेत्र में मृत्यु होती है, तो उसे अवश्य ही मुक्ति मिल जाती है। स्त्री यदि अपवित्र हो या पवित्र हो, वह कुमारी हो, विवाहिता हो, विधवा हो, बन्ध्या, रजस्वला, प्रसूता हो अथवा उसमें संस्कारहीनता हो, चाहे वह किसी भी स्थिति में हो, यदि उसकी मृत्यु काशी क्षेत्र में होती है, तो वह अवश्य ही मोक्ष की भागीदार बनती है।

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8.त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग

त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग आठवां ज्योतिर्लिंग है और यह महाराष्ट्र के नासिक जिले में गोदावरी नदी के पास स्थित है। यह मंदिर नासिक स्टेशन से 34 किलोमीटर दूर गोदावरी नदी के तट पर है। मंदिर की नक्काशी बेहद सुंदर है। त्र्यंबकेश्वर की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इस ज्योतिर्लिंग में ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों ही विराजित हैं। मंदिर के अंदर एक छोटे से गड्ढे में तीन छोटे-छोटे लिंग हैं, जिन्हें त्रिदेवों (ब्रह्मा, विष्णु और शिव) का प्रतीक माना जाता है।

त्र्यंबकेश्वर मंदिर के अंदर ही एक कुंड बना है, जिसे कुशावर्त का नाम दिया गया है. मान्यताओं के मुताबिक, यह कुंड गोदावरी नदी का स्रोत है. ऐसा माना जाता है कि ब्रह्मगिरि पर्वत में गोदावरी नदी बार-बार लुप्त हो जाया करती थी. इसी को रोकने के लिए ऋषि गौतम ने एक कुशा की मदद से गोदावरी को यहां पर बांध दिया, इसलिए इस कुंड को कुशावर्त के नाम से जाना जाने लगा.

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9.वैघनाथ महादेव

वैघनाथ महादेव को बैजनाथ भी कहते हैं और यह नौवां ज्योतिर्लिंग है, जो झारखंड के देवघर में स्थापित है।इस ज्योतिर्लिंग का संबंध रावण से है। रावण भगवान शिव का परम भक्त था। एक बार वह भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए हिमालय पर कठोर तपस्या कर रहा था। उसने एक-एक करके अपने 9 सिरों को काटकर शिवलिंग पर चढ़ा दिया। जब वह अपना 10 वां सिर काट करके चढ़ाने जा रहा था, तभी शिव जी प्रकट हो गए।

शिव जी ने प्रसन्नता जाहिर करते हुए रावण से वर मांगने के लिए कहा।रावण चाहता था कि भगवान शिव उसके साथ लंका चलकर रहें, इसीलिए उसने वरदान में कामना लिंग को मांगा। भगवान शिव मनोकामना पूरी करने की बात मान गए, परंतु उन्होंने एक शर्त भी रख दी।

उन्होंने कहा कि अगर तुमने शिवलिंग को कहीं रास्ते में रख दिया, तो तुम उसे दोबारा उठा नहीं पाओगे। शिव जी की इस बात को सुनकर सभी देवी-देवता चिंतित हो गए। सभी इस समस्या को दूर करने के लिए भगवान विष्णु के पास पहुंच गए।भगवान विष्णु ने इस समस्या के समाधान के लिए एक लीला रची। उन्होंने वरुण देव को आचमन करने रावण के पेट में जाने का आदेश दिया। इस वजह से रावण को देवघर के पास लघुशंका लग गई।

रावण को समझ नहीं आया क्या करे, तभी उसे बैजू नाम का ग्वाला दिखाई दिया। रावण ने बैजू को शिवलिंग पकड़ाकर लघुशंका करने चला गया।वरुण देव की वजह से रावण कई घंटों तक लघुशंका करता रहा। बैजू रूप में भगवान विष्णु ने मौके का फायदा उठाते हुए शिवलिंग वहीं रख दिया। वह शिवलिंग वहीं स्थापित हो गया। इस वजह से इस जगह का नाम बैजनाथ धाम पड़ गया।

12 ज्योतिर्लिंग के नाम व स्थान

 

10.नागेश्वर ज्योतिर्लिंग

भगवान शिव का यह दसवां ज्योतिर्लिंग बड़ोदा क्षेत्र में गोमती द्वारका के पास है। इस स्थान को दारूकावन भी कहा जाता है। इस ज्योतिर्लिंग को लेकर कई जगह विवाद है। कुछ लोग इसे दक्षिण हैदराबाद के औढ़ा ग्राम में स्थित मानते हैं। नागेश्वर ज्योतिर्लिंग को भगवान शिव के 10 ज्योतिर्लिंग के रूप में जाना जाता है. मान्यताओं के अनुसार नागेश्वर का मतलब नागों का ईश्वर या नागों का देवता वासुकी है जो भगवान शिव के गले में माला के रूप में रहता है.

मान्यताओं के अनुसार इस मंदिर में दर्शन करने मात्र से सभी प्रकार के रोगों से मुक्ति पाई जा सकती है. हिंदू धार्मिक पौराणिक ग्रंथों में उल्लेख मिलता है कि नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन मात्र से सभी प्रकार के पापों से भी मुक्ति प्राप्त की जा सकती है. ऐसा माना जाता है कि यह प्राचीन और प्रमुख मंदिर केवल भगवान शिव को समर्पित किया गया है. यहां पर शिवजी की श्रद्धा पूर्वक पूजा नागेश्वर के रूप में की जाती है.

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11. रामेश्वर ज्योतिर्लिंग

भगवान शिव का एकदाशवें ज्योतिर्लिंग तमिलनाडु में समुद्र के किनारे स्थित है। इस तीर्थ के सेतुबंध भी कहा जाता है। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार जब भगवान श्री राम लंका की तरफ बढ़ रहे थे तब उन्होंनें समुद्र के किनारे शिवलिंग बनाकर भगवान शिव की पूजा अर्चना की थी। पूजा से प्रसन्न होकर भगवान भोलेनाथ ने श्री राम को विजयश्री का आशीर्वाद दिया था। श्री राम ने भोलेनाथ से यह भी अनुरोध किया कि सदैव इस ज्योतिर्लिंग रुप में यहां निवास करें और भक्तों को अपना आशीर्वाद दें। उनकी इस प्रार्थना को भगवान शंकर ने स्वीकार किया और यहां विराजमान हो गए।

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12.घुष्मेश्व ज्योतिर्लिंग

भगवान शिव का द्वादशवें ज्योतिर्लिंग को घृष्णेश्वर या घुसृणेश्वर के नाम से भी जाना जाता है। यह ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के दौलताबाद में स्थित है। इस ज्योतिर्लिंग के बारे में एक पौराणिक कथा प्रचलित है जो कि इस प्रकार है। दक्षिण देश में देवगिरि पर्वत के पास सुधर्मा नाम का ब्राह्मण अपनी पत्नी सुदेहा के साथ निवास करता था। उनके जीवन का एक ही कष्ट था कि उन्हें कोई संतान नहीं थी। कई प्रयास के बाद भी उनके आंगन में बच्चे की किलकारी नहीं सुनाई पड़ी। तब ब्राह्मण की पत्नी सुदेहा ने छोटी बहन घुष्मा से विवाह अपने पति का विवाह करा दिया। घुष्मा भगवान शिव की परम भक्त थी। वह प्रतिदिन 100 पार्थिव शिव बनाकर पूरी भक्ति और निष्ठा से पूजा करती थी और फिर एक तालाब में उन्हें विसर्जित करती थी। उस पर भोलेनाथ की महान कृपा थी।

समय के साथ उसने एक पुत्र को जन्म दिया। बच्चे के आने से घर में खुशी और उल्लास का माहौल छा गया लेकिन घुष्मा से मिली खुशी उसकी बड़ी बहन सुदेहा को रास न आई और वह उससे जलने लगी। उसका पुत्र सुदेहा को खटकने लगा और एक रात अवसर पाकर सुदेहा ने उसके पुत्र की हत्या करके उसी तालाब में फेंक दिया।परिवार में मातम छा गया सब विलाप करने लगे लेकिन शिवभक्त घुष्मा को अपनी भक्ति पर पूर्ण विश्वास था वह बिना किसी दुख विलाप के रोज की तरह उसी तालाब में सौ शिवलिंगों की पूजा कर रही थी। इतने में उसे तालाब से ही अपना पुत्र वापस आता दिखा।

यह सब भगवान शिव की महिमा थी कि घुष्मा ने अपने मृत पुत्र को फिर से जीवित पाया। उसी समय स्वयं शिव वहां प्रकट होकर घुष्मा को दर्शन देते हैं।भगवान उसकी बहन को दंड देना चाहते थे लेकिन घुष्मा अपने अच्छे आचरण के कारण भगवान से अपने बहन को क्षमा करने की विनती करती है। अपनी अनन्य भक्त की प्रार्थना पर शिव ने घुष्मा से वरदान मांगने को कहा, तब घुष्मा कहती है कि मैं चाहती हूं कि आप लोक कल्याण के लिए हमेशा के लिए यहां पर बस जाएं। भक्त के नाम को जग में अमर करने के लिए शिव ने कहा कि मैं अपनी भक्त के नाम से यहां घुष्मेश्वर के नाम से जाना जाऊंगा। तब से यह जगत में शिव के अंतिम ज्योतिर्लिंग के तौर पर पूजा जाता है।

 

12 ज्योतिर्लिंग के नाम व स्थान

सामान्यतः पूछे जाने वाले प्रश्न :

प्रश्न : 12 ज्योतिर्लिंग के नाम और कहाँ स्थित है?

उत्तर : १२ ज्योतिर्लिंग निम्न प्रकार है 1सौराष्ट्र प्रदेश (काठियावाड़) में श्रीसोमनाथ, 2श्रीशैल पर श्रीमल्लिकार्जुन, 3उज्जयिनी (उज्जैन) में श्रीमहाकाल, 4ॐकारेश्वर अथवा अमलेश्वर (मालवा में), 5परल्यां वैद्यनाथं च नामक स्थान 6श्रीभीमशंकर, 7सेतुबंध पर श्री रामेश्वर, 8दारुकावन में श्रीनागेश्वर, 9वाराणसी (काशी) में श्री विश्वनाथ,10 गौतमी (गोदावरी) के तट पर श्री त्र्यम्बकेश्वर, 11हिमालय पर केदारखंड में श्रीकेदारनाथ और 12शिवालय में श्रीघुश्मेश्वर।

प्रश्न :भारत में 12 आदि ज्योतिर्लिंगों में से पहला कौन सा है?

उत्तर : भारत में 12 आदि ज्योतिर्लिंगों में से पहला श्रीसोमनाथ है जो गुजरात में स्थित है |

प्रश्न :पृथ्वी पर कितने ज्योतिर्लिंग है?

उत्तर : पृथ्वी पर 12 ज्योतिर्लिंग है |

भारत धार्मिक मान्यताओं और पवित्र मंदिरों से बसा देश है, जहां लोग ईश्वर की आराधना करते हैं। भगवान शिव के मंदिरों, शिवालयों में हर साल लाखों की संख्या में जाते हैं। इन्हीं पवित्र शिवालयों में भोलेनाथ के 12 ज्योतिर्लिंग के नाम व स्थान को बारे हमने विस्तृत जानकारी दी युक्त जानकारी हमारे पाठको के लिए विभिन्न स्त्रोतों से एकत्रित करके प्रस्तुत की गई है जो सिर्फ जानकारी के लिए है गहन जानकारी के लिए शिव पुराण आदि धार्मिक गंथो का अनुसरण करे .भगवान शिव आपकी सभी मनोकामनएं पूर्ण करे ॐ नमः शिवाये

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