गायत्री वह दैवी शक्ति है…माँ गायत्री की महिमा ,गायत्री मंत्र की शक्ति
श्रीराम शर्मा आचार्य के अनुसार गायत्री वह दैवी शक्ति है जिससे सम्बन्ध स्थापित करके मनुष्य अपने जीवन विकास के मार्ग में बड़ी सहायता प्राप्त कर सकता है। परमात्मा की अनेक शक्तियाँ हैं, जिनके कार्य और गुण पृथक् पृथक् हैं। उन शक्तियों में गायत्री का स्थान बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। यह मनुष्य को सद्बुद्धि की प्रेरणा देती है। गायत्री से आत्मसम्बन्ध स्थापित करने वाले मनुष्य में निरन्तर एक ऐसी सूक्ष्म एवं चैतन्य विद्युत् धारा संचरण करने लगती है, जो प्रधानतः मन, बुद्धि, चित्त और अन्तःकरण पर अपना प्रभाव डालती है। बौद्धिक क्षेत्र के अनेकों कुविचारों, असत् संकल्पों, पतनोन्मुख दुर्गुणों का अन्धकार गायत्री रूपी दिव्य प्रकाश के उदय होने से हटने लगता है। यह प्रकाश जैसे- जैसे तीव्र होने लगता है, वैसे- वैसे अन्धकार का अन्त भी उसी क्रम से होता जाता है।
मनोभूमि को सुव्यवस्थित, स्वस्थ, सतोगुणी एवं सन्तुलित बनाने में गायत्री का चमत्कारी लाभ असंदिग्ध है और यह भी स्पष्ट है कि जिसकी मनोभूमि जितने अंशों में सुविकसित है, वह उसी अनुपात में सुखी रहेगा, क्योंकि विचारों से कार्य होते हैं और कार्यों के परिणाम सुख- दुःख के रूप में सामने आते हैं। जिसके विचार उत्तम हैं, वह उत्तम कार्य करेगा, जिसके कार्य उत्तम होंगे, उसके चरणों तले सुख- शान्ति लोटती रहेगी। गायत्री उपासना द्वारा साधकों को बड़े- बड़े लाभ प्राप्त होते हैं। हमारे परामर्श एवं पथ- प्रदर्शन में अब तक अनेकों व्यक्तियों ने गायत्री उपासना की है। उन्हें सांसारिक और आत्मिक जो आश्चर्यजनक लाभ हुए हैं, हमने अपनी आँखों देखे हैं।
इसका कारण यही है कि उन्हें दैवी वरदान के रूप में सद्बुद्धि प्राप्त होती है और उसके प्रकाश में उन सब दुर्बलताओं, उलझनों, कठिनाइयों का हल निकल आता है, जो मनुष्य को दीन- हीन, दुःखी, दरिद्र, चिन्तातुर, कुमार्गगामी बनाती हैं। जैसे प्रकाश का न होना ही अन्धकार है, जैसे अन्धकार स्वतन्त्र रूप से कोई वस्तु नहीं है; इसी प्रकार सद्ज्ञान का न होना ही दुःख है, अन्यथा परमात्मा की इस पुण्य सृष्टि में दुःख का एक कण भी नहीं है। परमात्मा सत्- चित् स्वरूप है, उसकी रचना भी वैसी ही है। केवल मनुष्य अपनी आन्तरिक दुर्बलता के कारण, सद्ज्ञान के अभाव के कारण दुःखी रहता है, अन्यथा सुर दुर्लभ मानव शरीर ‘‘स्वर्गादपि गरीयसी’’ धरती माता पर दुःख का कोई कारण नहीं, यहाँ सर्वत्र, सर्वथा आनन्द ही आनन्द है। सद्ज्ञान की उपासना का नाम ही गायत्री उपासना है।
जो इस साधना के साधक हैं, उन्हें आत्मिक एवं सांसारिक सुखों की कमी नहीं रहती, ऐसा हमारा सुनिश्चित विश्वास और दीर्घकालीन अनुभव है। गायत्री वह दैवी शक्ति है…माँ गायत्री की महिमा ,गायत्री मंत्र की शक्ति के बारे में बात करे तो हिंदू धर्म में गायत्री की महिमा का वर्णन समस्त पापो को नाश करने वाली माँ की आराधना से तेज ,बल ,और बुद्धि का विकास होता है गायत्री मंत्र का भी बहुत विस्तार से वर्णन मिलता है । गायत्री मंत्र बहुत ही प्रभावशाली मंत्र है। इस मंत्र का जाप बड़ी से बड़ी परेशानियों से मुक्ति दिलाता है। ये मंत्र वेदों का एक महत्वपूर्ण मंत्र है।
गायत्री मंत्र की शक्ति
हिन्दू धर्म में 4 वेद है और चारो वेदो में माँ गायत्री मंत्र का उल्लेख किया गया है ,गायत्री मंत्र की रचना किस ने की थी ? तो शास्त्रों के अनुसार ऋषि विश्वामित्र ने गायत्री मंत्र की रचना की थी। गायत्री माता वह दैवी शक्ति है किसकी अर्चना से समस्त दुखो का नाश होता है यही माँ गायत्री की महिमा है और गायत्री मंत्र की शक्ति इस मंत्र के जाप से दुखियों के दुःख का भी निवारण हो जाता है। अगर घर में नियमित इस मंत्र का जाप हो तो नकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश नहीं होगा।यदि मन को आप एकाग्र नहीं कर पा रहे है तो ,रोज इस मंत्र का जाप करें ,एकाग्रता में मदद मिलेगी।शाश्त्रो के अनुसार गायत्री मंत्र के 24 वों अक्षरों के एक एक अर्थ है।
ऋषियों ने 24 अक्षरों के 24 देवता बताए है। इन देवताओं की 24 चैतन्य शक्तियां विराजमान है। गायत्री मंत्र के चौबीस अक्षर 24 शक्तियों के बीज मंत्र है। इस मंत्र की उपासना से संत महात्मा सिद्धि प्राप्त करते है।अगर विद्यार्थी इस मंत्र का नियमित जाप करे तो मन एकाग्र होगा। कोई भी नियमित जाप करे तो घर में सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है। इस मंत्र के जाप से मुक्ति मिलती हैं। गायत्री मंत्र की शक्ति वो निम्न है :सफलता शक्ति,पराक्रम शक्ति , पालन शक्ति,कल्याण शक्ति ,योग शक्ति, प्रेम शक्ति ,धन शक्ति ,तेज शक्ति रक्षा, बुद्धि शक्ति ,दमन शक्ति ,निष्ठा शक्ति , प्राण शक्ति , धारण शक्ति , मर्यादा शक्ति , तप शक्ति , शांति शक्ति , कॉल शक्ति , उत्पादक शक्ति ,रस शक्ति , आदर्श शक्ति ,साहस शक्ति ,विवेक शक्ति ,सेवा शक्ति , गायत्री मंत्र में ये चौबीस तरह की शक्तियां है ।
गायत्री मंत्र का अर्थ
ॐ भूर्भवः स्वयं तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् । इस मंत्र को अत्यंत प्रभावी मंत्रों में से एक मंत्र माना जाता है। इसका अर्थ सृष्टिकर्ता प्रकाशमान परमात्मा के तेज को हम ध्यान करते है, परमात्मा का वह तेज हमारी बुद्धि को सन्मार्ग की ओर चलने के लिए प्रेरित करें
गायत्री मंत्र के जाप का तरीका
इस मंत्र का जाप सुबह उठकर स्नान करने के बाद स्वच्छ कपड़े पहन कर करे। इस मंत्र का जाप कभी भी उच्च स्वर में नहीं करें। सुबह के समय गायत्री मंत्र का जाप सूर्योदय से पहले आरंभ कर देना सही मन जाता है,और सूर्योदय के कुछ समय पश्चात तक करना चाहिए। तीसरा समय शाम को सूर्यास्त से पहले इसका जाप शुरू करें और सूर्यास्त होने तक गायत्री मंत्र को सही उच्चारण के साथ करें।
गायत्री मंत्र के क्या लाभ है?
गायत्री मंत्र के अर्थ को ध्यान से मनन करेंगे तो पाएंगे कि इस मंत्र के जप से कई तरह के लाभ मिलते है। गायत्री मंत्र का ठीक तरीके से नियमित जाप किया जाए तो क्रोध शांत होता है और व्यक्ति को तनाव और चिंता जैसी समस्याओं से मुक्ति मिलती है. कुंडली में सूर्य की स्थिति बेहतर होती है और करियर ग्रोथ अच्छी होती है. समाज में मान सम्मान बढ़ता है. नकारात्मकता दूर होती है और तमाम रोगों से मुक्ति मिलती है. एकाग्रता बढ़ती है और जीवन की हर समस्या का हल हो जाता है.
महाभारत के रचयिता वेद व्यास कहते हैं गायत्री की महिमा में कहते हैं जैसे फूलों में शहद, दूध में घी सार रूप में होता है वैसे ही समस्त वेदों का सार गायत्री है। यदि गायत्री को सिद्ध कर लिया जाये तो यह कामधेनू (इच्छा पूरी करने वाली दैवीय गाय) के समान है। जैसे गंगा शरीर के पापों को धो कर तन मन को निर्मल करती है उसी प्रकार गायत्री रूपी ब्रह्म गंगा से आत्मा पवित्र हो जाती है। गायत्री को सर्वसाधारण तक पहुंचाने वाले विश्वामित्र कहते हैं कि ब्रह्मा जी ने तीनों वेदों का सार तीन चरण वाला गायत्री मंत्र निकाला है। गायत्री से बढ़कर पवित्र करने वाला मंत्र और कोई नहीं है। जो मनुष्य नियमित रूप से गायत्री का जप करता है वह पापों से वैसे ही मुक्त हो जाता है ।
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