नई दिल्ली/गाजियाबाद/नोएडा
दिल्ली-एनसीआर एक बार फिर दम घोंटती हवा की चपेट में है। वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) खतरनाक स्तर पर पहुंचने के बाद प्रशासन को स्कूलों को हाइब्रिड और ऑनलाइन मोड में संचालित करने का फैसला लेना पड़ा है। यह कदम बच्चों की सेहत को ध्यान में रखकर उठाया गया है, लेकिन सवाल यह है कि क्या ऑनलाइन पढ़ाई प्रदूषण की समस्या का स्थायी समाधान हो सकती है?
प्रदूषण का स्तर और हालात
दिल्ली-एनसीआर, नोएडा, गाजियाबाद, गुरुग्राम और फरीदाबाद जैसे शहरों में पिछले कुछ दिनों से स्मॉग की मोटी परत छाई हुई है। सुबह और शाम के समय दृश्यता बेहद कम हो जाती है। विशेषज्ञों के अनुसार, वाहनों से निकलने वाला धुआं, निर्माण कार्यों की धूल, पराली जलाने और मौसम की स्थिरता ने हालात को और गंभीर बना दिया है।स्वास्थ्य विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे हैं कि इस तरह की हवा में सांस लेना
बच्चों
बुजुर्गों
अस्थमा और हृदय रोगियों
के लिए बेहद खतरनाक हो सकता है।
स्कूलों का ऑनलाइन फैसला: मजबूरी या दूरदर्शिता?
दिल्ली-एनसीआर के कई सरकारी और निजी स्कूलों ने हालात को देखते हुए ऑनलाइन कक्षाएं शुरू कर दी हैं।
प्रशासन का मानना है कि छोटे बच्चों को प्रदूषित वातावरण से दूर रखना फिलहाल सबसे सुरक्षित विकल्प है।
हालांकि, अभिभावकों की राय बंटी हुई है।
कुछ माता-पिता इस फैसले को सही मानते हैं, तो कुछ का कहना है कि
ऑनलाइन पढ़ाई से सीखने की गुणवत्ता प्रभावित होती है
बच्चों का स्क्रीन टाइम बढ़ जाता है
सामाजिक और मानसिक विकास पर असर पड़ता है
बच्चों की सेहत बनाम पढ़ाई
डॉक्टरों के अनुसार, प्रदूषित हवा का बच्चों पर सीधा असर पड़ता है।
लगातार खराब AQI से
खांसी
आंखों में जलन
सांस लेने में परेशानी
फेफड़ों की क्षमता पर असर जैसी समस्याएं बढ़ रही हैं।
ऐसे में सवाल पढ़ाई का नहीं, स्वास्थ्य को प्राथमिकता देने का है। विशेषज्ञ मानते हैं कि अगर हालात ऐसे ही बने रहते हैं, तो स्कूलों को लचीली नीति अपनानी होगी।
लोकल एंगल: गाजियाबाद और नोएडा में हालात ज्यादा गंभीर
गाजियाबाद और नोएडा जैसे औद्योगिक इलाकों में प्रदूषण का स्तर कई बार दिल्ली से भी ज्यादा दर्ज किया गया है।
स्थानीय निवासियों का कहना है कि सुबह-शाम घर से बाहर निकलना मुश्किल हो गया है।
गाजियाबाद निवासी एक अभिभावक बताते हैं,
“बच्चों को स्कूल भेजना जोखिम भरा लग रहा है। ऑनलाइन पढ़ाई कम से कम उन्हें सुरक्षित तो रखती है।”
क्या यह हर साल की कहानी बनती जा रही है?
पिछले कुछ वर्षों में यह साफ हो गया है कि सर्दियों के आते ही दिल्ली-एनसीआर प्रदूषण की गिरफ्त में आ जाता है।
हर साल स्कूल बंद करना, ऑनलाइन क्लास और आपात बैठकें—अब यह अस्थायी नहीं, बल्कि नियमित पैटर्न बनता जा रहा है।
पर्यावरण विशेषज्ञों का मानना है कि
जब तक प्रदूषण के मूल कारणों पर काम नहीं होगा
तब तक ऐसे फैसले केवल तात्कालिक राहत ही देंगे
आगे का रास्ता क्या है?
विशेषज्ञ सुझाव देते हैं कि
निर्माण कार्यों पर सख्ती
सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा
इलेक्ट्रिक वाहनों का उपयोग
पराली जलाने पर प्रभावी नियंत्रण
जैसे कदम ही स्थायी समाधान दे सकते हैं।
साथ ही, स्कूलों को भी
एयर प्यूरीफायर
इनडोर एक्टिविटी प्लान
हेल्थ एडवाइजरी
जैसे उपाय अपनाने होंगे।
निष्कर्ष
दिल्ली-एनसीआर में स्कूलों का ऑनलाइन होना यह दर्शाता है कि प्रदूषण अब केवल पर्यावरण का नहीं, शिक्षा और स्वास्थ्य का भी संकट बन चुका है।
जब तक हवा साफ नहीं होगी, तब तक बच्चों की पढ़ाई और सेहत दोनों असुरक्षित रहेंगी।
अब वक्त आ गया है कि अस्थायी उपायों से आगे बढ़कर स्थायी समाधान की ओर कदम उठाए जाएं।
